सावधान… मेले में अपनी जान की परवाह स्वयं करें

 

मेले में जाने‌ वाले सैलानियों के लिए चेतावनी…

मेले में आपकी और आपके बच्चों की जान को खतरा…

मेले में केवल मंत्रियों की सुरक्षा करता है प्रशासन…

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यहाँ हाईवे‌ की तरह घूमती गाड़ियां ले सकती हैं आपके बच्चों की जान…

जिला प्रशासन और पुलिस केवल मंत्री और नेताओं की सुरक्षा को देता है सुरक्षा…

मेले में जनता की सुरक्षा को खतरे में डाल‌ रहा मेला प्राधिकरण …

पूरे मेले में सैलानियों के बीच वाहनों की आवाजाही से संकट में सैलानियों की जान…

किसी हादसे के बाद जागने वाले पुलिस प्रशासन को नहीं जनता की परवाह…

सैलानियों की मौत का इंतजार कर रहा मेला प्राधिकरण…

राजनेता अफसर व्यापारियों के वाहनों के लिए झूला सैक्टर तक छूट…

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एंकर -: सावधान ये मेला आपकी और आपके‌ बच्चों की जान ले सकता है और ये हम नहीं कह रहे ये बयान कर रही हैं ये तस्वीरें जो ग्वालियर के रियासत कालीन माधवराव सिंधिया व्यापार मेले के प्रांगण के अधिकारियों के नाकारापन की क्योंकि आपकी नजर जरा सी चूकी और मेले में घूम रहे आपके बच्चों की जान खतरे में पड़ी।

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आपको बता दें कि ग्वालियर मेला पूरे ग्वालियर चम्बल अंचल समेत आसपास के राज्यों‌ के आकर्षण का‌ सबसे प्रमुख केन्द्र है। हर वर्ष यहाँ लाखों‌ करोड़ों सैलानी घूमने और खरीददारी करने पहुँचते हैं। लेकिन यहाँ मनोरंजन के लिए आए सैलानियों की जान के साथ खिलवाड़ करने का काम मेला‌ प्रबंधन कर रहा‌ है। मेरे का प्रभार वर्तमान में संभागीय आयुक्त मनोज खत्री के सुपुर्द किया गया है लेकिन वे केवल तभी पहुंचते हैं जब कोई‌ मंत्री या बड़ा नेता व्यापार मेले का निरीक्षण करने जाता है। रही बात मेला सचिव टी एस रावत की तो उन्हें मेले में आने वाले सैलानियों से नहीं बल्कि उनके जरिए आने वाले राजस्व से मतलब है‌ जिससे वे अपनी और अपने आकाओं की जेबें भर सकें।

देखिए पुलिस के सामने झूला सैक्टर में धड़ल्ले से चल रहे वाहन

अब बात करते हैं उन रसूख दार अफसरों नेताओं और व्यापारियों की जो दस बजते ही सैलानियों से भरे मेले के अंदर अपनी कारें ले आते हैं और मेले में पैदल चलने वाले सैलानियों की जान के साथ खिलवाड़ करते हैं। दरअसल ये लोग भी आम आदमी ही हैं लेकिन अपनी‌ दबंगई और रसूख दिखाने के चक्कर में अपने चार पहिया वाहनों को भीड़ भरे मेले में चलाते नजर आते हैं। इन पर पुलिस का‌ डंडा नहीं चलता क्योंकि पुलिस को भी आम आदमी की जान से मतलब नहीं है। इसमें पुलिस की भी गलती नहीं है क्योंकि कोई भी दुर्घटना होगी तभी तो पुलिस का काम शुरू होगा। इससे पहले पुलिस केवल तमाशबीन नजर आती है और लोगों की जान के साथ जोखिम का नजारा देखने का काम करती है। जैसे शहर में होने वाली तमाम दुर्घटनाओं के बाद पुलिस का एक्शन शुरू होता है उससे पहले नहीं।

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