देश को महान बनाने के लिए 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन की जगह आत्मनिर्भर बनाना होगा…RSS
अनैतिक धन से मनाई दीपावली शुभ कैसे….???

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विकसित देश बनाने की होड़ भारतवर्ष अपनी महानता खो रहा है…?
सुनिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग क्या कहते हैं…
क्योंकि देश के 80 करोड़ लोगों के घर में चूल्हा जले इसलिए सरकार उन्हें मुफ्त में अनाज दे रही है तो क्या देश का विकास चंद लोगों के लिए हो रहा है। पहली बार इस तरह के ज्वलंत और गंभीर मुद्दे पर सवाल उठाते हुए दिनकर सबनीस जी कहते कि फ्रीबीज और जनकल्याणकारी योजनाएं बनाने से पूर्व सरकार यदि ऐसे लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था भी करना होगी। अर्थव्यवस्था में अनैतिकता आ रही है। क्या देश को विकसित करने में चंद लोगों की भूमिका होनी चाहिए।
2….. Voice
राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए क्या हम सनातनी संस्कृति और परम्पराओं को खत्म कर भारतवर्ष की वसुधैव कुटुंबकम् की मूल भावना को खत्म करते जा रहे हैं। ये सवाल तब उठता है जब हम पैसा कमाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। हम दीपावली के अवसर पर अपने घर के दरवाजे पर शुभ लाभ अंकित करते हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जो धन हमारे घर में आ रहा है वो वाकई शुभ है। दीपावली समेत तमाम सारे त्यौहार केवल लाभ का माध्यम बन कर रह गए हैं। दीपावली पर घर में प्रवेश करने वाला शुभ कहीं दूर पीछे रह गया है।इस शुभ की न किसीको जरूरत है और न ही चिंता। कहते हैं कि धन का अभाव भी गलत है और धन का प्रभाव भी। इसलिए सोचिए समझिए और चिंतन कीजिए कि क्या हमारे घर में आने वाले धन से परिवार समाज और देश का कितना भला हो रहा है। बता दें कि भारतीय संस्कृति में अर्थोपार्जन और इच्छाओं की तुष्टि को संयम और त्याग से बांधा गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांतीय संघचालक अशोक पांडेय का कहना है कि जो अर्थोपार्जन समाज के ऐसे नियमों के अनुसार कमाया जाए जो किसीको हानि न पहुँचाए किसीके अधिकारों का हनन न करे ऐसे लाभ को शुद्ध और शुभ लाभ कहा जाता है। ऐसा शुभ धन समाज के लिए कल्याणकारी होता है। अनैतिक साधनों से कमाया गया धन समाज में अहंकार संघर्ष विकृति जब इन सबको जन्म देता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में धर्म अर्थ और काम को जोड़कर बताया गया है।
दुनिया भर में बढ़ते बाजारीकरण, उपभोक्तावाद मुनाफाखोरी के चलते देश की मूल संस्कृति और सद्भावना को बड़ी क्षति हुई है। आधुनिकता और वैश्वीकरण की दौड़ में भाग रहे भारतवर्ष में शिक्षा पद्धति पर सवाल खड़े करते हुए अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के राष्ट्रीय संगठन मंत्री दिनकर सबनीस कहते हैं कि आज के दौर में जिस तरह से एमबीए जैसे कोर्स चल रहे हैं वो हमारे देश की परम्परा और संस्कृति के अनुरूप न होकर किसी भी कीमत पर लाभ कमाने की दिशा में कार्य करते हैं।
बड़ी बड़ी कम्पनियों में जो लोग बैठे हैं उनकी केवल एक ही सोच रहती है कि कैसे कंपनी को मुनाफा हो। इस तरह से देश तो विकसित हो जाएगा लेकिन क्या महान बन पाएगा। क्योंकि देश को विकसित होने के लिए जिस पैसे की आवश्यकता है वो अमेरिका में है लेकिन विश्व के सबसे ज्यादा पागलखाने भी अमेरिका में हैं विश्व की सबसे ज्यादा जेलें भी अमेरिका में हैं तो हमे देश को विकसित बनाने के साथ महान भी बनाना है और महान बनाने में देश के हर नागरिक की महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए।
अंत में जो अर्थ आपके घर में आ रहा है उसमें लाभ से पहले शुभ आना आवश्यक है क्योंकि देश को महान बनाना है विकसित तो था है और रहेगा।
शुभ दीपावली
