अहं ब्रम्हास्मि_ हम वकील हैं इनके आगे पुलिस प्रशासन भी नतमस्तक

न्याय कानून इनकी नजर में कुछ नहीं…
क्योंकि ये वकील हैं_ न्याय कानून पुलिस प्रशासन से ऊपर।


देखिए कौन पिटा कौन बचा और किसकी गई इज्ज़त
कानून के रखवालों की सबसे खास रिपोर्ट…

ग्वालियर कानून हमारी बपौती है हम इसकी धज्जियां उड़ा सकते हैं और हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हम चाहे जो करें हम जिसे चाहें बंधक बनाएँ हम चाहें तो सरकार को भी कूट सकते हैं फिर ये तो केवल सरकारी कर्मचारी हैं।
पत्रकार हो या पक्षकार हमारे आगे तो सीएसपी एडिशनल एसपी और एसपी भी नतमस्तक हैं। कोर्ट के जज भी हमें कुछ नहीं बोलते क्योंकि हम वकील हैं।
कोई भी वकील ये बात नहीं कहेगा और न ही किसीने कही है लेकिन तस्वीरें यही बयान कर रही हैं यहाँ आप देखेंगे कि सिटी सेंटर का सबसे व्यस्ततम मार्ग जहाँ कलेक्ट्रेट डिस्ट्रिक्ट कोर्ट जिला पंचायत समेत तमाम कार्यालय मौजूद हैं लेकिन इस पूरे मार्ग को कानून की रखवाली करने का दावा करने वाले वकीलों ने बंधक बना लिया।
यहाँ से माननीय न्यायाधीश भी गुजरते हैं कलेक्टर एडीएम और सभी प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों की आवाजाही इस मार्ग से होती है। लेकिन वकीलों के आगे सारे पुलिस और प्रशासन के अधिकारी असहाय नजर आए। यही नहीं जिले के पुलिस अधीक्षक भी ढाई घंटे से हंगामा कर रहे इन वकीलों के आगे घुटने टेकते नजर आए। पुलिस बल‌ की मौजूदगी में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के सामने शासकीय कर्मचारी भी पिटे और पत्रकार भी लेकिन वकीलों की दबंगई के आगे दो एडीशनल एसपी तीन थानों के टीआई सीएसपी एसडीएम समेत पूरा प्रशासन पूरी तरह अपाहिज नजर आया।
यहाँ तस्वीरों में आप देखेंगे कि छुट्टी होने के बाद घर जाते स्कूली बच्चों की बस भी चक्काजाम में फँसी रही। महिलाओं के साथ भी अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया।
पहली बार पुलिस इतनी असहाय और बेचारी नजर आई कि मौके पर मौजूद लोगों को पुलिस पर दया आई। वैसे भी महिला पुलिस अधिकारी की मानहानि में वकीलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। और बेचारी महिला सीएसपी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का इंतजार करते हुए अपमान का कड़वा‌ घूँट पीकर रह गईं क्योंकि ये अपमान कानून के कथित रखवाले ही कर रहे थे।
अब किसी भी मामले में भीड़ ही करती है और यही नजर आया ग्वालियर के सबसे पॉश और इलाके में जहाँ एक वकील के साथ कथित तौर पर थाने में अभद्रता होने के बाद पूरी सड़क पर चक्काजाम कर दिया गया।
इस पूरे मामले में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या जिले का पुलिस प्रशासन इतना‌ कमजोर है कि चंद उपद्रवी लोग उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर देते हैं। यहाँ दूसरा सवाल ये है कि क्या यदि कोई पीड़ित व्यक्ति या आम जनता इस तरह का प्रदर्शन शहर में कहीं भी करता तो क्या पुलिस उस पर डंडा नहीं चलाती। पुलिस प्रशासन का ये दोहरा रवैया जनता और सरकार के बीच बड़ी खाई पैदा करेगा और न्याय व्यवस्था के प्रति अविश्वास भी क्योंकि जब कानून के रखवाले ही कानून को पैर की जूती समझ लें तो भरोसा टूटना लाजिमी है।

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